भगवान् का प्रिय आहार है भक्त का अहंकार। भगवान् इसे रहने नहीं देते नारद समझ गए भगवान् ने मुझे अपनी माया के वशीभूत कर लिया था। नारद शांत हो गए और ध्यान में बैठ गए। कथा का सन्देश है :जब कोई व्यक्ति बहुत क्रोध करे तो समझ जाना यह असफल व्यक्ति है ,हार गया है। इससे बचने का सहज उपाय है भगवान् के गुणों को याद करो उस समय। पूर्व कथा प्रसंग : मनुशतरूपा के सफल तप के बद आकाशवाणी का होना -आप दोनों ही कौशल्या और दशरथ होंगे ,मैं आपका पुत्र बनकर आऊंगा लेकिन अभी इंतज़ार करना होगा। उधर जय विजय के शाप के कारण भी रावण कुम्भकर्ण(कुम्भ -करण ) का आना और नारद के शाप को भी अंगीकार कर भगवान् का स्वयं भी राम बनकर आने को उत्सुक होना । राम के जन्म के कारण बने। आइये चलते हैं अयोध्या जहां समूची वसुंधरा के वैभव का एक मात्र उपभोक्ता राजा दसरथ -जब वृद्धावस्था नज़दीक आ गई -किसे सौंपे ये ऐश्वर्य वसुंधरा का। देवताओं को जब भय होता है मैं छलांग लगाकर स्वर्ग पहुंचता हूँ। वशिष्ठ जी मेरे गुरु हैं। मैं इच्छवाकु वंश का प्रतापी सम्राट -मुझे राजपुत्र नहीं चाहिए ? मैं उन्मादियों को देख रहा हूँ। मैं दे...