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एक नया नरेटिव ये लोग रच रहें हैं -राफेल से लेकर वेक्सीन तक जो कुछ भी देश को आगे ले जाने वाला है उसका बे धड़क जी जान से टिकैती शैली में भूंडा विरोध करो। नवजीवन जैसे रिसाले ,एनडीटीवी जैसे चैनलिये ,कई पुरूस्कार लौटाऊ अभूतपूर्व प्रोफ़ेसर भी इस मुहीम में शामिल हैं।

वामपंथी आतंक के कलपुर्जे  आजकल विविध -रूपा वामपंथी आतंकवाद खुलकर खेल रहा है हालांकि अपनी आखिरी साँसें गिन रहा है ,दस जनपथ में बैठी इटली की अम्मा ,टिकैत और अमरिन्दर-सिंहों की फूफी ,ममता की सहोदर ,विषदंतों  यद्यपि इन दिनों कभी -कभार  ही अपना मुंह खोलती है लेकिन जब भी खोलती है भरपूर जहर उगलती है ,बेटा इसका स्वयं नियुक्त वेबिनारियन बन गया है।  एक नया नरेटिव ये लोग रच रहें हैं -राफेल से लेकर वेक्सीन तक जो कुछ भी देश को आगे  ले जाने वाला है उसका बे धड़क जी जान से टिकैती शैली में भूंडा विरोध करो। नवजीवन जैसे रिसाले ,एनडीटीवी जैसे चैनलिये ,कई पुरूस्कार लौटाऊ अभूतपूर्व प्रोफ़ेसर भी इस मुहीम में शामिल हैं।  इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता -कोविड १९ वेक्सीन ने भारत के प्रति आलमी इस स्तर पर एक आदर भाव पैदा किया है ,ये ऊलजुलूल सोच के लोग फ्रीडम -हाउस के पे रोल पर हैं।  चुनाव संपन्न करवाने वाली मशीनरी ,हमारी शहरी मिलिटरी (पोलिस )को निशाने पे लिए रहना इनका असली धर्म है। इनकी शिनाख्त कर लें -बेलट से इन पर ज़ोरदार प्रहार करें आवाज़ इट...

"तुलसी बुरा न मानिये, जो गवाँर कहि जाय। जैसे घर का नर्दहा भला बुरा बहि जाय॥"

"तुलसी बुरा न मानिये, जो गवाँर कहि जाय। जैसे घर का नर्दहा भला बुरा बहि जाय॥" भावसार : गंवार की बात का  बुरा नहीं मानना चाहिए जैसे घर की नाली में भला बुरा सभी बह जाता है। तुलसी सहन कर लेते हैं किन्तु वे कबीर की तरह कुटी छवाके रखने वाले नहीं है। रामचरितमानस के बालकांड में उन्होंने संतों  और असन्तों दोनों की वन्दना की है: बन्दहुँ संत असज्जन चरणा। दु:खप्रद उभय भेदु कछु बरना।। बिछुरत एक प्रानु हरि लेहीं। मिलत एक दु:ख दारुन देहीं।। मैं(तुलसी) संतों और असंतों दोनों की ही वन्दना करता हूँ। दोनों में बस थोड़ा सा अन्तर है। एक के बिछुड़ने पर जैसे प्राण ही निकल जाते हैं और दूसरे मिलने पर महान दु:ख देते हैं।   तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर | बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।। अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोड़ कर मीठा बोलने का प्रयास करे |