लड़कियां कितने सपने देखतीं हैं ?हाँ !बेहद के !अपने ही तैं नहीं अपनी गुड़ियाँ के लिए भी उनके मन में एक विलक्षण राजकुमार की कामना होती है। चाव से ब्याह रचातीं हैं अपनी गुड़िया का कोई समझौता नहीं कोई खुरसट उनकी राजकुमारी सी गुड़िया को यूं ब्याह कर ले जाए। और वह बस निर्मूक देखती रहें। यहां तो साक्षात लंगूर ही था -बूढ़ा खुरसट जिसके साथ सुरभि का सौदा हो रहा था और कोई और नहीं स्वयं उसका सगा भाई बड़े जागीरदार का बेटा ही कर रहा था ये लेनदेन । अपनी शराब की लत और ऐयाशी की खातिर। क़र्ज़ में आकंठ डूबे जागीरदार अपनी लाड़ली बेटी की कोई मदद नहीं कर पा रहे थे। इन्हीं हालातों में सुरभि - वो जिसका मन बादलों के रंग मौसम की रंगीनी देखता था सावन के गीत लिखता था श्रृंगार को संवारता था हर दिन एक नै कविता लिखता था वह स्वयं बिरहा गीत बनने से पहले बैरागिन ही बन गई। जोगिन बन गई।यह योग और साधना का मार्ग था। पीछे मुड़कर देखने का वक्त नहीं था। मीराबाई हो गई सुरभि ज़माने के लिए। अपना नाम -रूप खोके। प्रारब्ध भी अजीब खेल दिखाता है। अनाथ और नास्तिक विजय भी यहीं इस गाँव में चला आया है ...
शिवे के उद्गारों से प्रसूत शिवे को समर्पित भावसरणी -वीरुभाई ! याद में उसकी कर सब काम आवेंगे तेरे घनश्याम। हाँ !एक दिना आवेंगे री तेरे श्याम ! View all Feedback सुनो शिवे ब्रजबाम -तुम्हारे होंगे पूर्ण काम उसी का नाम जपो सुबोशाम ,मोरे श्याम !रे मोरे श्याम। मिलो-द्रुत गति से राधे श्याम। सुनो बृजमोहन हे घनश्याम ,शिवे जपती नित तेरो नाम। लख लख हैं तुम्हे प्रणाम ,श्वास से निकले यही प्रणाम।