किदार शर्मा की यह अनुपम कृति जोगन (१९५०)आज भी उतनी ही सात्विक आंच लिए हुए है गीत -संगीत -पार्श्व- संगीत की ,अभिनय के शीर्ष की। गीतादत्त ,तलत मेहमूद साहब और शमशाद बेगम का स्वर बुलो सी रानी का संगीत अपनी ही परवाज़ लिए हुए था
लड़कियां कितने सपने देखतीं हैं ?हाँ !बेहद के !अपने ही तैं नहीं अपनी गुड़ियाँ के लिए भी उनके मन में एक विलक्षण राजकुमार की कामना होती है। चाव से ब्याह रचातीं हैं अपनी गुड़िया का कोई समझौता नहीं कोई खुरसट उनकी राजकुमारी सी गुड़िया को यूं ब्याह कर ले जाए। और वह बस निर्मूक देखती रहें।
यहां तो साक्षात लंगूर ही था -बूढ़ा खुरसट जिसके साथ सुरभि का सौदा हो रहा था और कोई और नहीं स्वयं उसका सगा भाई बड़े जागीरदार का बेटा ही कर रहा था ये लेनदेन । अपनी शराब की लत और ऐयाशी की खातिर। क़र्ज़ में आकंठ डूबे जागीरदार अपनी लाड़ली बेटी की कोई मदद नहीं कर पा रहे थे। इन्हीं हालातों में सुरभि -
वो जिसका मन बादलों के रंग मौसम की रंगीनी देखता था सावन के गीत लिखता था श्रृंगार को संवारता था हर दिन एक नै कविता लिखता था वह स्वयं बिरहा गीत बनने से पहले बैरागिन ही बन गई। जोगिन बन गई।यह योग और साधना का मार्ग था। पीछे मुड़कर देखने का वक्त नहीं था।
मीराबाई हो गई सुरभि ज़माने के लिए। अपना नाम -रूप खोके। प्रारब्ध भी अजीब खेल दिखाता है। अनाथ और नास्तिक विजय भी यहीं इस गाँव में चला आया है फ़ूफ़ी के पास अपनी जागीर बेचने के लिए लेकिन मीराबाई के संगीत के चर्चे उसे मंदिर की ओर खींचते रहते हैं। मीराबाई से उसे प्रेम हो जाता है। वह अपनी इस आराध्या को पुष्प अर्पित करने लगता है।
मीराबाई विचलित होती है। विजय की अन-देखी करने की निरंतर कोशिश उसे परास्त कर देती है। विजय उसके बारे में सब कुछ जान लेना चाहता है। आखिर किन हालातों ने इस युवा सुंदरी को बैरागन बना दिया।
विजय के किरदार में दिलीप साहब का जादू सिर चढ़के बोलता है। उनकी देह- भाषा ,हाथ का हिलना हिलाना उठना बैठना अभिनय की अभिव्यक्ति को अभिनव आयाम देता है।संजीदा चेहरा खुद उनसे भी आगे निकल जाता है। दिलीप कुमार पीछे छूट जाता है।
दिलीप साहब अभिनीत होते हैं अभिनय नहीं करते। और सुरभि से मीराबाई में रूपांतरित नरगिश जन्म- जन्म की बैरागिन योग पथ की साधिका तप :पूत हो जाती हैं। आत्मोत्सर्ग की वेदना को आपने मूर्त किया है।
किदार शर्मा की यह अनुपम कृति जोगन (१९५०)आज भी उतनी ही सात्विक आंच लिए हुए है गीत -संगीत -पार्श्व- संगीत की ,अभिनय के शीर्ष की। गीतादत्त ,तलत मेहमूद साहब और शमशाद बेगम का स्वर बुलो सी रानी का संगीत अपनी ही परवाज़ लिए हुए था। देखा जाए तो फिल्म का पार्श्व संगीत एक जीवंत परिवेश को साकार करता है।भक्ति संगीत में डूबी रहती है पूरी फिल्म। दर्शक इसमें तैरता डूबता है। हिचकोले खाता है।
(१)Hindi Film Songs - Jogan (1950) | MySwar
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