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नफ़रत करने वाले भी कमाल का हुनर रखते हैं , देखना भी नहीं चाहते ,और नज़र भी हर वक्त रखते हैं।

देते अपने ही बहुत अपनों को संताप , देखा उनको पर नहीं करते पश्चाताप।(वीरुभाई )   नफ़रत करने वाले भी कमाल का हुनर रखते हैं , देखना भी नहीं चाहते ,और नज़र भी हर वक्त रखते हैं। (अनुपम खैर ) देखा जब भी उन्हें ,ख़ुद  से ख़फ़ा  देखा , ख़ुद  को ख़ुद  से ही छिपाये  देखा। (वीरुभाई ) ग़िला शिकवा ही न हो फिर  मोहब्बत में क्या रख्खा है , दिल चाक किया जिसने  छिपा रख्खा है। (वीरुभाई ) ज़ुल्म की  मुझ पे इन्तिहाँ  कर दे , मुझ सा बे -जुबां मिले फिर न मिले। (वीरुभाई )