देते अपने ही बहुत अपनों को संताप ,
देखा उनको पर नहीं करते पश्चाताप।(वीरुभाई )
नफ़रत करने वाले भी कमाल का हुनर रखते हैं ,
देखना भी नहीं चाहते ,और नज़र भी हर वक्त रखते हैं। (अनुपम खैर )
देखा जब भी उन्हें ,ख़ुद से ख़फ़ा देखा ,
ख़ुद को ख़ुद से ही छिपाये देखा। (वीरुभाई )
ग़िला शिकवा ही न हो फिर मोहब्बत में क्या रख्खा है ,
दिल चाक किया जिसने छिपा रख्खा है। (वीरुभाई )
ज़ुल्म की मुझ पे इन्तिहाँ कर दे ,
मुझ सा बे -जुबां मिले फिर न मिले। (वीरुभाई )
वाह विरुभाई♥️ ..!
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