शख्सियत :मनोहर लाल खट्टर
भले ही अब तक लोग ये जान गए हैं के मनोहर लाल खट्टर लगातार दूसरी बार हरयाणा के मुख्यमंत्री बने हैं .निस्संदेह अपने चायवाले को अब तक अमरीका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश ही नहीं तीसरी दुनिया के गरीब और विकासमान देश भारत के अति -जनप्रिय नेता ,लोकप्रिय प्रधान मंत्री के रूप में जानते हैं। वे खुद भी अपने श्रम से संसिक्त बचपन और कमतर शिक्षित अपने परिवार के बारे में खुद भी लोगों को बतलाकर श्रम की महत्ता को रूपायित करते रहें हैं लेकिन माननीय मनोहर लाल के संघर्षपूर्ण जीवन की कथा अभी आमफहम नहीं हुई है। जनता जनार्दन उनके अतीत के बारे में कितना जानती है निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। आपका बचपन रोहतक जिले के एक छोटे से गाँव निदाना(तहसील कलानौर ) में बीता। (जन्म तिथि : पांच मई १९५४ )। आरम्भिक शिक्षा भी यही संपन्न हुई।यहीं से आप ने दसवीं की कक्षा का खर्चा अपने ही छोटे से खेत में उगाई गई सब्ज़ी रोहतक मंडी में सुबह सवेरे नित्य पहुंचा कर निकाला ।नेकी राम शर्मा गोरमेंट कालिज से आप हायर सेकेंडरी करके आगे की पढ़ी के लिए दिल्ली निकल गए। आरम्भ में आप की तमन्ना डॉक्टर बनने की थी लेकिन अपनी कोशिश में नाकामयाब रहने के बाद आप पिता श्री हरबंश लाल जी की कोई धंधा शुरू करने या गाँव में ही रहकर उनके साथ किसानी के लिए तो राजी नहीं हुए माँ से चंद पैसे लेकर अपने एक निकट सम्बन्धी के पास चले आये। इनके ही दिल्ली वस्त्र भण्डार में आप सेल्समेन बने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। बाद में खुद की अपनी छोटी सी कपड़े की दूकान भी चलाई। इसी से प्राप्त आमदनी से आप ने अपनी बहन की शादी का खर्च जुटाया।अपने भाइयों को दूकान की संभाल में हाथ बटाने की सलाह दी।
इनके दादा -श्री भगवान् दास जी ,विभाजन पूर्व के पश्चिमी पंजाब के झंग जिले(अब वर्तमान पाकिस्तान ) से आकर वर्तमान हरियाणा(पूर्व में पूरबी पंजाब ) के रोहतक जिले में रहे। गाँव में छोटी सी अपनी दूकान चलाई। इसी से जमा राशि से निदाना गाँव में ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा और किसानी करने लगे।
आपातकाल के दौरान आप भारत की सांस्कृतिक थाती एवं एकता को अक्षुण्य रखने वाले तथा इस एकता को आज तक बनाये रखने रखने वाले संगठन आरएसएस से जुड़ गए। इसी दरमियान आपकी भेंट श्री अटल बिहारी बाजपेयी से हुई। इनके व्यक्तित्व की गहरी छाप से आपने आजीवन शादी न करने का मन ही मन फैसला कर लिया हालांकि इनकी माँ इससे सहमत नहीं हुई लेकिन आप अपने संकल्प पे बने रहे।
संघ से आपका जुड़ाव १९७७ के बाद लगातार बढ़ता गया आप पूर्णकालिक सेवक बने रहे। १९८० से १९९४ तक आप लगातार संघ के समर्पित सिपाही बने रहे। जो भी काम आपको सौंपा गया बाखूबी आपने उसे निभाया। इसी बरस आपको संघ ने भारतीय जनता पार्टी के काम में हाथ बंटाने की ज़िम्मेवारी सौंपी। सन २००० से २०१४ तक आप भाजपा के संघठन महा सचिव की ज़िम्मेवारी निभाते रहे। २०१४ के लोकसभा चुनाव के लिए आपको हरयाणा के चुनाव अभियान का प्रभारी बनाया गया। सारा चुनाव अभियान यहां का आपकी निगरानी में ही चला। हरयाणा में भाजपा ने लोकसभा की तमाम दस सीटें हासिल की। आपको इनके काम से ख़ुशहोकर भाजपा ने नेशनल एग्ज़िक्युटिव का सदस्य बना लिया। मोदी जी के गुजरात चुनाव प्रचार में भी उनके मख्यमंत्री के दौड़ के लिए आपने काम ही नहीं किया सारा प्रबंध भी देखा। इनके सानिद्य में एक सहज सहजन्य लगाव कर्मठ मोदी का भी आप पर बहुत गहरा पड़ा। मोदी ने तो संघ की सभाओं के लिए कालीन बिछाने का काम भी खूब किया था। 'लर्न वाइल यु अर्न' की ,ये दोनों शख्सियतें आज तक भी कायल हैं। हिमायती रहें हैं दोनों । आप बेशक पकौड़े बेचिये (बहादुर गढ़ )ने इसी पकड़े बेचने के काम के ज़रिये अनेक मुकाम हासिल किये हैं।छोटा सा बिजनेस भी आपको कहीं से कहीं पहुंचा सकता है। सवाल आपकी कर्मठता का है जो हर छोटे बड़े काम से जुड़ी है। कर्मठता ही कामयाबी से जुड़ी न कोई काम बड़ा होता है न छोटा हमारे प्रयत्न ही हमें कामयाब या असफल बनाते हैं।वही कम ज्यादा या छोटे बड़े होते हैं।
आपके नेतृत्व में ' माँ के गर्भ में ही गर्भस्थ कन्या को दफन करने का काम- धंधा बिलकुल ठप्प हो गया है। ब्याह के लिए अब हरयाणा को बाहर से कन्याओं का निर्यात नहीं करना पड़ेगा। हरयाणा को इस दिशा में अभी और काम करना पड़ेगा। अभी भी यहां प्रत्येक हज़ार लड़कों के पीछे ८८९ लड़कियां हैं जो भारतीय औसत से अभी भी कम है। इसे कमसे कम ९२१ तक तो लाना ही पड़ेगा। युवा दुष्यंत जी का सशक्त टेका इस काम को खट्टर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ाएगा। ऐसी प्रत्याशा रखना गैर -वाज़िब नहीं होगा।
पूर्व में खट्टर हरियाणा विशाल पार्टी की चौधरी बंशी लाल सरकार को भी टेका लगा चुके हैं। भले तब बीजेपी कोई हरियाणा में राजनीतिक तौर पर उतना नहीं जानी थी। आप चुप -चाप अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी से करते रहें हैं।आपको भी कौन जानता था। लेकिन
आपका सहज व्यक्तित्व एक दिन ज़रूर भारत राष्ट्र का मार्गदर्शन करने का निमित्त बनेगा। नैमित्तिक तौर पर ही आप अपना काम करते हैं।कर्मठता आपके हाथ में है। नैमित्तिक कर्म ( कर्ता भाव से मुक्त करता है ). यही गीता का भी सन्देश है। रामनाथ कोविंद भी कोई राजनीति का नामचीन नाम नहीं था। एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जो इसका भी साक्षी बनेगा। हम नहीं होंगे ये प्रागुक्ति (भविष्य कथन )ज़रूर सिद्ध होगा।
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