दिल्ली की सीमाओं पर ,और न होबे खेला ,
उखड़े डेरा टंटा पूरन ,खत्म होये सब मेला।
झेल चुके बर्बादी कितने ,गाँव यहां ,
रोते खोमचे वाले ,अब दिन रात यहां।
चुक जाए धीरज जन मन का ,
इससे पहले उठ जाए ये रेला।
विशेष :एजेंडाई टिकैत गैंग लगातार व्यवस्था को ठेंगा दिखाता रहा है कोई सवा सौ दिन से ,दिल्ली की सीमाओं के आसपास के धंधे उद्योग चौपट हो चुके हैं ,ये लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे ,यूं ही हराम की रोटी तोड़ते रहेंगे ,तर्क को ताक पे रख चुके हैं दिमाग से पैदल ये लोग इसीलिए बीच सड़कों पर पक्की रिहाइशें बना रहें हैं ,दादा-लायी सड़कें हैं ये ?इन्हीं का अनुकरण हुआ है नांदेड़ में अन्यत्र पंजाब में उत्तर प्रदेश में जहां ऐसे ही गैंग ने पोलिस को लगातार निशाना बनाया है। सुओ मोटो संज्ञान लिया जाना चाहिए इनकी हरकतों का पहले ही बहुत देर हो चुकी है।
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