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रावण जमा तीन सिर कुलमिलाकर तेरह मुखी विपक्ष भोले भाले किसानों को दिल्ली सीमाओं पे आने का आवाहन कर खुद लापता है।

हरयाणा का जन्म नवंबर १ ,१९६६ में हुआ तब से लेकर आदिनांक मुख्यमंत्री पद को शोभित करने वाले महानुभावों पर नज़र डाली जाए तो एक रोचक तथ्य उभर कर सामने आएगा। दृष्टिपात करते हैं सरसरी तौर पर।निष्कर्ष बाद में निकालेंगे। '

पहले मुख्य मंत्री रहे पंडित भगवददयाल शर्मा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ),अल्पावधि ही (१४२ दिन )   इस पद पर बने रह सके ,बाद इसके राष्ट्रपति शासन (१८३ दिन )रहा। फिर   आये बंशीलाल जी पहले चरण की अवधि पूरी करने के बाद एक बार फिर दूसरे चरण में १९३ दिन निकाल ले गए।चौथे नंबर पर  इनके बाद आये श्री बनारसी दास गुप्ता एक साल एक सौ पचास दिन ही निकाल पाए , प्रदेश में एक फिर राष्ट्रपति शासन लग गया।५२ दिन रहा। 

पांचवे नंबर पर आये चौधरी देवीलाल दो साल सात दिन निकाल पाए। छटे नंबर पर इनके बाद आये श्री भजन लाल छ: साल ३४१ दिन पूरे कर गए। 

बंशीलाल जी ने फिर वापसी की इस मर्तबा आप एक साल पंद्रह दिन ही टिक पाये।

चौधरी देवी लाल ने भी एक बार फिर वापसी  और दो साल १६५ दिन निकाल ले गए। 

बाद इनके आये इनके ही पुत्र श्री ॐ प्रकाश चौटाला साहब प्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री के तौर  आपने १७१ दिन ही निकाले। 

बनारसी दास गुप्ता लौटे लेकिन मात्र ५१  दिनों के लिए। ॐ प्रकाश चौटाला ने फिर वापसी की और पूरे  पांच बरस निकाल गए। 

आठवें मुख्य मंत्री के बतौर चौधरी हुकुम सिंह २४८ दिन ही इस पद पर रहे। एक बार फिर १०८ दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा। भजनलाल जी ने एक बार फिर वापसी की इस  मर्तबा चार साल ३२२ दिन निकाल गए। कुल ग्यारह साल २८२ दिन भुगताये इस पद पर। 

बंशीलाल जी एक बार फिर लौटे तीन साल ७४ दिनों के लिए ,ओमप्रकाश जी चौटाला एक  बार फिर लौटे पांच साल २२४ दिन के लिए। कुल अवधि बतौर मुख्यमंत्री छः साल ४९ दिन।बंसीलाल जी कुल मिलाकर ग्यारह साल दस महीने इस पद पर रहे। 

विहंगावलोकन पर ही पता चल जाता है हरियाना की राजनीति में जाटों का ही वर्चस्व रहा है। 

तीन जाट लालों के तौर पर जाना गया हरियाना।  

प्रदेश के नौवें मुख्य मंत्री बने चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा कुल अवधि आपने भुगताई नौ साल २३५ दिन। 

दसवें मुख्य मंत्री के बतौर श्री मनोहर लाल खट्टर बने  गत छ: साल २१२ दिन से ज्यादा वक्त से. 

खट्टर भी हैं तो लाल पर गैर -जाट हैं। 

गत छः माह से ज़ारी केंद्रीय केंद्रीय कृषि कानूनों  के  विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डटे वेषधारी 

किसानों के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में पड़ोसी  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की भी टोह ले 

लेते हैं। पंजाब से  आंदोलन में शामिल वेषधारी किसानों में  अनेकांश जट्ट सिख हैं। 

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सियासत में जाटों का रोल देखें हैं भी या नहीं। इस एवज़ इस पद 

पर अब 

तक रहे मुख्यमंत्रिओं पर भी नज़र डाल लेते हैं। 

२६ जनवरी १९५० से  पहले उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत का हिस्सा  था तबसे लेकर अब तक का ज़ायज़ा लेते हैं अब इसके दो हिस्से हैं उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश। 

संयुक्त प्रांत के पहले मुख्यमंत्री बने - 

 मोहम्मद एहमद सैयद खान (स्वतन्त्र ) ,गोबिंद बल्लभ पंत (दो बार  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस )मिलाकर इस पद पर २६ जनवरी १९५० तक    रहे।तीन नवंबर १९३९ से ३१ मई १९४६ की अवधि में मुख्यमंत्री पद खाली ही रहा। एक अप्रैल १९४६ से २६ जनवरी १९५० तक गोबिंद  बल्लभ पंत मुख्यमंत्री रहे। 

स्टेट आफ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के बतौर गोबिंद बल्लभ पंत २६ जनवरी १९५० से लेकर २७ दिसंबर १९५४ तक कायम रहे। बाद इनके आये सम्पूर्णानंद ,चंद्र भानु गुप्त ,सुचेता कृपलानी , एक बार फिर चंद्र भानुगुप्त। (सभी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ),इसके बाद आये चौधरी चरण सिंह (भारतीय क्रान्ति दल )आपने एक साल की अवधि भी नहीं भुगताई राष्ट्रपति शासन में चला आया उत्तर प्रदेश। कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह और कमला पति  त्रिपाठी आये। फिर राष्ट्र पति शासन लगा। कांग्रेस के हेमवती नंदन बहुगुणा आये दो साल बीस दिन ही भुगताये प्रदेश में फिर राष्ट्र पति शासन लग गया। कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी के बाद एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन लगा। नवनिर्मित जनता पार्टी के राम नरेश यादव ,बनारसी दस आये फिर राष्ट्र पति शासन लगा। 

विश्वनाथ प्रताप सिंह ,श्री पति मिश्र,वीर बहादुर सिंह आये ,कांग्रेस के ही नारायण दत्त तिवारी एक बार फिर आये। मुलायम सिंह यादव (जनता दल )आये भी और गए भी भारतीय जनता पार्टी के कल्याण सिंह की तरह। राष्ट्रपति शासन लगा मुलायम सिंह जी एक  बार फिर लौटे अल्पकाल के लिए मायावती (बहुजन समाज पार्टी ) आईं। फिर कल्याण सिंह और रामप्रकाश गुप्त राजनाथ सिंह (तीनों भाजपा )आये ,अल्प काल के राष्ट्र पति शासन के बाद फिर क्रमश:मायावती ,मुलायम(सपा ) ,मायावती (बसपा )अखिलेश आये (समाज वादी पार्टी )इसके बाद से योगी आदित्य नाथ जी मौजूद हैं पूरी मजबूती से। 

यहां चरण सिंह जी के अलावा कोई जाट नहीं है ,जाटों की एक छोटी सी पॉकिट रही है पश्चिमी उत्तर प्रदेश। आप हापुड़ में जन्में। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट अपेक्षाकृत शिष्ट और सभ्रांत है। तर्क और यथार्थ उसे समझ आता है। अपने प्रदेश को वह प्यार करता है। तर्क को तक पर उठकर उसने कभी नहीं रखा। 

उसे आग और दंगों के हवाले करने  की जुगत में कभी नहीं रहा। उत्तर प्रदेश में इनकी हिस्सेदारी आबादी के हिसाब से छः फीसद है। ये आंकड़ा २०११ का है।

अब हरियाणा पर लौटते हैं : 

जाट यहां बीस से पच्चीस फीसद के बीच बने हुए हैं। प्रभुत्व रहा है इनका राजनीति पर। दादालाई जागीर समझते हैं हरियाणा को अपनी। शासन से विलग छिटक कर ही  ये उग्र नहीं होते शासन में रहते हुए भी ऐसा कर सकते हैं किया है एक बार नहीं अनेक बार। कबीलाई उग्रतर  रूप जाट आरक्षण सम्बन्धी आंदोलन में मुखर हुआ जहां अपने ही शहर जला दिए गए शासन की देख रेख में। 

सब जानते हैं कौन लोग थे ये ?आज भी अनेकांश वही हैं जो वेषधारी छद्म किसानों को भड़का रहे हैं। आग बुझ न जाए। लगातार पूला डाल रहे हैं। यहां तक तो ठीक। गुरनाम सिंह चढूनी की हिमाकत और सियासत दोनों देखिये। आप राकेश टिकैत पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं -अकेले हरियाणा के किसानों ने आंदोलन को सम्भाला हुआ है वह खट्टर और भाजपा के तमाम विधायकों सांसदों का घेराव कर रहें ,हरियाणा के गाँवों में उनका प्रवेश अवरुद्ध कर दिया गया। भाजपा और जननायक जनता पार्टी के  समर्थकों के साथ बेटी रोटी का रिश्ता खत्म किया जाता है। 

आप यहीं नहीं  रुकते आगे फरमाते हैं :योगी आदित्य नाथ उत्तर प्रदेश के गाँवों में खुले घूम रहे हैं। बड़बोले टिकैत पलटवार करते हुए कहते है :उत्तर प्रदेश की इंतजामियां किसानों के खौफ से गाँवों का रुख करती ही नहीं है। 

पूछा जा सकता है टिकैत हरियाणा में क्या कर रहे हैं ? डिब्बे का दूध नहीं पीया है तो शेर की मांद  में हाथ डालें ।कौन घास डालता है आपको पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक छोटी सी पॉकिट के बाहर।योगी आदित्य नाथ आरपार की लड़ाई लड़ते हैं कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने से पहले अब वहां टिकैत को सोचना पड़ेगा। 

खट्टर साहब जिस राष्ट्रीय स्वयं संघ से तपकर निकले हैं उसका काम देश को एक जुट बनाये रखना है किसी को भी निशाने पे नहीं लेना है सब अपने है बहुत अपने। लेफ्टीयों का रक्तरँगी गैंग वेषधारी किसानों के बीच घुसपैठ कर आग में पूला डाल रहा है। ये भकुवे मुखबिरों की संतानें हैं। मार्क्सवाद की बौद्धिक  गुलामी ही नहीं करते बीजिंग का अंबुपान भी करते हैं मेरे देश के बहुसंख्यक किसान ये खेला चुपचाप देख रहे हैं। 

आम आदमी पार्टी और ट्वीट कांग्रेस इनका पंखा झल रहे हैं। पूरी बे शरमी  के साथ। 

कृपया यहां भी पधारें :

Farm laws: Farmers observe black day to mark six months of protests, raise flags and burn effigies

Shiromani Akali Dal chief Sukhbir Singh Badal and Aam Aadmi Party leader Harpal Singh Cheema were among many who hoisted black flags on top of their houses.

Farm laws: Farmers observe black day to mark six months of protests, raise flags and burn effigies

     

 

 

  

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