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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इमरजेंसी, जब कविताओं की धार से लड़ी गई लड़ाई:दोस्तो !प्रजातंत्र वही है जो इनकी अम्मा बतलायें ददई दर्शा गईं हैं आखिर इक्यावन साला शख्स है झूठ क्यों बोलेगा ये ग्यानी बाबा ,स्वामी असत्यानन्द केजरीवाल की तरह।

 कल  इमेज स्रोत, AFP/GETTY IMAGES 1978 में छपे अपने उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' में सलमान रुश्दी ने इमरजेंसी को 19 महीने लंबी रात बताया है. वाकई 19 महीने की वह रात हमारे लोकतांत्रिक समय का सबसे बड़ा अंधेरा पैदा करती रही. लेकिन, इस अंधेरे में भी कई लेखक रहे जिन्होंने अपने प्रतिरोध की सुबहें-शामें रचीं. हिंदी के गांधीवादी कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने तय किया कि वे आपातकाल के विरोध में हर रोज़ सुबह-दोपहर-शाम कविताएं लिखेंगे. अपने इस प्रण को उन्होंने यथासंभव निभाया भी. बाद में ये कविताएं 'त्रिकाल संध्या' के नाम से एक संग्रह का हिस्सा बनीं. संग्रह की पहली ही कविता इमरजेंसी के कर्ता-धर्ताओं पर एक तीखा व्यंग्य है- बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले / भवानीप्रसाद मिश्र बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले, उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं कभी कभी जादू हो जाता दुनिया में दुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये. हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती...

एक गाँव जो चालीस सालों से लोक डाउन में है

एक गाँव जो चालीस सालों से लोक डाउन में है  -सुविधाओं से महरूम न बिजली -पानी न सड़क अस्पताल न स्कूल  यह है ग्राम: गंगानगर आलमगीर  पोस्ट ऑफिस :ब्रजघाट  तहसील :गढ़ मुक्तेश्वर  जिला :हापुड़ (पश्चिम उत्तरप्रदेश ) राजधानी दिल्ली से दूरी :८७ किलोमीटर  रहवासी :१२०  परिवारों के कोई हज़ार लोग  चालीस साल पहले वर्तमान उत्तराखंड (पूर्व में उत्तर प्रदेश )से आये थे ये लोग यहां।  चकबंदी के आधार पर सरकार ने  इन्हें १५ -१५ एकड़ ज़मीन ज़रूर दी उसके बाद ठनठनपाल मदन गोपाल। भूमिहीन थे ये दरिद्रनारायण। गरीबी लाचारी कल भी थी आज भी है। वर्ष दो हज़ार में बना था उत्तरप्रदेश को दो भागों में बांटने के बाद एक अलग राज्य उत्तराखंड। वहीँ के रूद्र पुर से ये लोग यहां आये थे। यहां गत २२ बरसों से कोई चुनाव नहीं हुआ। १९९९ में हुए पंचायत चुनाव गंगानगर वालों ने वोट डाले थें। इसके बाद से इन्हें कोई भी कहीं भी वोट डालने का हक़ नहीं मिला है।  ये लोग कहते हैं पहले हमें बंगाली बतलाकर अधिकारों से वंचित किया गया अब ज़मीन से भी वंचित करने की तैयारी बतलाई जाती है जबकि हमारे पास कागज़ है...

वैक्सीन कालाबाज़ारी अमरिंदर की पगड़ी भारी। दोनों बहना- भैया गायब मची है अफरा तफरी भारी

बढ़िया धंधा कर रही अमरिंदर सरकार , इसके आगे हो गए अम्बानी बेकार।  अम्बानी बेकार युक्ति ऐसी अपनाई , वैक्सीन बिकवाय करोड़ों हुई कमाई।  तिस पर भी आरोप लगाया जाता अंधा , राहुल की सरकार कर रही बढ़िया धंधा। (ओमप्रकाश तिवारी ) देश पे आई विपदा भारी ,राहुल की थी सब  तैयारी , वैक्सीन  कालाबाज़ारी  अमरिंदर की पगड़ी भारी।  दोनों बहना- भैया गायब मची है अफरा तफरी भारी।   अरे !भाईसाहब आउल ! प्यारी सुघड़ सुमुखि बहन जी आपके बच्चों की वैक्सीन मिल  गईं हैं। भाई साहब अबुध कुमार कहलाते हैं।  थक जाते हैं जब मिथ्याचार करते करते , बहना को ले आते हैं।  जिनकी  बस एक ही योग्यता है इनकी शक़्ल सूरत अपनी दादी से मिलती है। भाई शक्ल तो  जयराम रमेश की भी प्रियदर्शिनी से मिलती है। गौर से देखो। बहरहाल असल मुद्दा तुम्हारा वैक्सीन प्रलाप है। स्यापा बंद करो अब।  पटियाला घराना तो देश भक्ति के  जाना गया है और अब कालाबाज़ारी के लिए जाना जाएगा। इसीलिए बुजुर्ग कह गए हैं आदमी अपनी सोहबत से जाना जाता है। कांग्रेस का संग दूजा चढ़े न रंग।  ...