इमरजेंसी, जब कविताओं की धार से लड़ी गई लड़ाई:दोस्तो !प्रजातंत्र वही है जो इनकी अम्मा बतलायें ददई दर्शा गईं हैं आखिर इक्यावन साला शख्स है झूठ क्यों बोलेगा ये ग्यानी बाबा ,स्वामी असत्यानन्द केजरीवाल की तरह।
कल इमेज स्रोत, AFP/GETTY IMAGES 1978 में छपे अपने उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' में सलमान रुश्दी ने इमरजेंसी को 19 महीने लंबी रात बताया है. वाकई 19 महीने की वह रात हमारे लोकतांत्रिक समय का सबसे बड़ा अंधेरा पैदा करती रही. लेकिन, इस अंधेरे में भी कई लेखक रहे जिन्होंने अपने प्रतिरोध की सुबहें-शामें रचीं. हिंदी के गांधीवादी कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने तय किया कि वे आपातकाल के विरोध में हर रोज़ सुबह-दोपहर-शाम कविताएं लिखेंगे. अपने इस प्रण को उन्होंने यथासंभव निभाया भी. बाद में ये कविताएं 'त्रिकाल संध्या' के नाम से एक संग्रह का हिस्सा बनीं. संग्रह की पहली ही कविता इमरजेंसी के कर्ता-धर्ताओं पर एक तीखा व्यंग्य है- बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले / भवानीप्रसाद मिश्र बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले, उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं कभी कभी जादू हो जाता दुनिया में दुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये. हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती...