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पुरुष : स पर : पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया | यस्यांत : स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततं।

अव्यक्तोक्षर  इत्युक्तस्तमाहु : परमां  गतिम् गतिम् |  यं प्राप्य :  न  निवर्तन्ते  तद्धाम परमं मम ||  उसी को अव्यक्त और अक्षर -ऐसा कहा गया है तथा उसी को परमगति कहा गया है और जिसको प्राप्त होने पर जीव फिर लौटकर संसार में नहीं आते ,वह मेरा परमधाम है।  व्याख्या :वास्तव में परमात्म तत्व वर्णनातीत है | अव्यक्त ,अक्षर ,परमगति आदि नाम उस तत्व का संकेत मात्र  करते हैं ; क्योंकि वह अव्यक्त -व्यक्त ,अक्षर -क्षर ,गति -स्थिति आदि से रहित निरपेक्ष तत्व है। उसे प्राप्त होने पर जीव लौटकर संसार में नहीं आता। कारण की जीव  उ स  परमात्म तत्व  का सनातन अंश होने से उससे अलग नहीं है। संसार में तो वह भूल से अपने को स्थिर मानता है। वास्तव में शरीर ही संसार में स्थित है ,स्वयं नहीं।  पुरुष : स पर : पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |  यस्यांत : स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततं।  हे पृथानन्दन अर्जुन !सम्पूर्ण प्राणी जिसके अंतर्गत हैं और जिससे यह सम्पूर्ण संसार  व्याप्त है ,वह परम पुरुष परमात्मा तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है।  व्याख्या :ज्ञान मार्ग में तो ग्यानी पुरुष  संसार से छूट जाता है ,मु

विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनी | शुनि चैव श्वपाके च पंडिता : समदर्शिन :||

 विद्या विनय सम्पन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनी |  शुनि चैव  श्वपाके च पंडिता :  समदर्शिन :||  ज्ञानी महापुरुष विद्याविनययुक्त ब्राह्मण में और चांडाल तथा गाय , हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।  व्याख्या : बेसमझ लोगों द्वारा यह श्लोक प्राय :  सम व्यवहार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। परन्तु श्लोक में 'समवर्तिन  :' न कहकर 'समदर्शिन  :' कहा गया है जिसका अर्थ है -समदृष्टि न कि सम -व्यवहार। यदि स्थूल दृष्टि से भी देखें तो ब्राह्मण ,हाथी ,गाय और कुत्ते के प्रति समव्यवहार असंभव है। इनमें विषमता अनिवार्य है। जैसे पूजन तो विद्या -विनय युक्त ब्राह्मण का ही हो सकता है ,न कि चाण्डाल का ; दूध गाय का ही पीया जाता है न कि कुतिया का ,सवारी हाथी पर ही की  जा सकती है न कि कुत्ते पर।  जैसे शरीर के प्रत्येक अंग के व्यव्हार में विषमता अनिवार्य है ,पर सुख दुःख में समता होती है,अर्थात शरीर के किसी भी अंग का सुख  हमारा सुख होता है और दुःख हमारा दुःख। हमें किसी भी अंग की पीड़ा सह्य नहीं होती। ऐसे ही प्राणियों से विषम (यथायोग्य) व्यवहार करते हुए  भी उनके सुख दुःख

लातों के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों या बाहर से

 लातों  के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों  या  बाहर से। मणिशंकर सोच और प्रजाति  के पढ़े लिखे गंवार इतना भी नहीं जानते। ये मूढ़मति स्मृति भ्रंश भूल गए बाजपेयीजी की  सदाशयता ,लाहौर बस यात्रा ,आगरा संवाद और कारगिल। ये टुकड़खोर स्वनामधन्य आईएएस खाता इस देश का है ढपली  पाकिस्तान  की बजाता है। ये साहित्य उत्सव  करांची का इस्तेमाल भारत निंदा के लिए करते हुए ज़रा भी नहीं लजाते ,सिद्ध होता है ये पक्के कांग्रेसी सोनिया शुक हैं। पाक भगत सिंह और वीरसावरकर को हमारी  सांझी विरासत बतलाता है। यह नालायक उनकी प्रतिमा पोर्ट ब्लेयर से  हटवा देता है। बुद्धि का दुरपयोग ख़बरों में बने रहने लिए कैसे किया जाता है ये कोई सोनिया स्वजनों ,सोनिया -स्वानों से सीखे। ताज्जुब ये है  ये दुर्मुख  कलमखोर अंग्रेजी के रिसालों में भुगतान लेख (Paid features )छपवाता है।