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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शख्सियत :रश्मि ताई

शख्सियत :रश्मि ताई जो कभी सहपाठी थे अब हमसफ़र हैं 'हमराही' हैं। जी हाँ आप ठीक समझे हैं। हम बात कर रहें हैं 'वाहिनी साहब' रश्मि ताई ,अब रश्मि ठाकरे की। हर कामयाब मर्द के पीछे एक औरत होती है यह विश्वास तब और भी घना -गाढ़ा हो जाता है जब  सौम्यता  और शालीनता की नायाब मिसाल रश्मि ताई से मुखातिब होते हैं। एक आम मध्य वर्गीय परिवार से आईं हैं आप। आपके व्यक्तित्व पे मातुश्री (रश्मि ताई की  माता श्री मती मीणा ताई  )की गहरी छाप है। आप रंगभूमि में ही रहती हैं मेकअप मैन  की तरह. आपने उद्धव जी को सजाया संवारा है। पहले जे. जे. स्कूल आफ आर्ट्स में सहपाठी और अब जीवन संगनी बनकर उनकी अनाम राजनीतिक गुरु और सलाकार रहीं हैं आप। आगे भी ये सफर यूं ही नए क्षितिज नापेगा। आप ने ही हिन्दू हृदय सम्राट बाला केशव  प्रबोधनकर ठाकरे से उनका राजनीतिक वारिस उद्धव जी को बनाये जाने का वचन उनके जीते जी ले लिया था। आप एक अन्नपूर्णा साबित हुई हैं मातोश्री के लिए जो बाला साहब के बीमार होने पर उनकी कुशल पूछने आते सभी आम अउ ख़ास सैनिकों को  अल्पाहार क्या चाव से भरपेट भोजन आग्रह पूर्वक करवातीं थीं। आप ल

शख्सियत :रश्मि ताई

शख्सियत :रश्मि ताई जो कभी सहपाठी थे अब हमसफ़र हैं 'हमराही' हैं। जी हाँ आप ठीक समझे हैं। हम बात कर रहें हैं 'वाहिनी साहब' रश्मि ताई ,अब रश्मि ठाकरे की। हर कामयाब मर्द के पीछे एक औरत होती है यह विश्वास तब और भी घना -गाढ़ा हो जाता है जब  सौम्यता  और शालीनता की नायाब मिसाल रश्मि ताई से मुखातिब होते हैं। एक आम मध्य वर्गीय परिवार से आईं हैं आप। आपके व्यक्तित्व पे मातुश्री (रश्मि ताई की  माता श्री मती मीणा ताई  )की गहरी छाप है। आप रंगभूमि में ही रहती हैं मेकअप मैन  की तरह. आपने उद्धव जी को सजाया संवारा है। पहले जे. जे. स्कूल आफ आर्ट्स में सहपाठी और अब जीवन संगनी बनकर उनकी अनाम राजनीतिक गुरु और सलाकार रहीं हैं आप। आगे भी ये सफर यूं ही नए क्षितिज नापेगा। आप ने ही हिन्दू हृदय सम्राट बाला केशव  प्रबोधनकर ठाकरे से उनका राजनीतिक वारिस उद्धव जी को बनाये जाने का वचन उनके जीते जी ले लिया था। आप एक अन्नपूर्णा साबित हुई हैं मातोश्री के लिए जो बाला साहब के बीमार होने पर उनकी कुशल पूछने आते सभी आम अउ ख़ास सैनिकों को  अल्पाहार क्या चाव से भरपेट भोजन आग्रह पूर्वक करवातीं थीं। आप लेंस के पी

कैसे बचे जेट लेग से ?कैसे मिले निजात हवाई थकान से ?

कैसे बचे जेट लेग से ?कैसे मिले निजात हवाई थकान से ? आप सवेरा (सुबह ) होने पर खुद -बा- खुद जाग जाते हैं।इसके लिए कतई जरूरी नहीं है के मुर्गा बोले। आप अलार्म लगाके सोवें। पुराने बुजुर्ग इस कला में माहिर थे तब न शिफ्टें होती ही  थीं  (काम की पालियाँ )होतीं थीं ,न मोबाइल और अलार्म। उनकी जन्मजात इनबिल्ट घड़ी (जैविक घड़ी ,सरकादिअन - रिदम(Circadian Rhythm ) बिस्तर से उठा देती थी। तमाम वन्य जीव इसी घड़ी  से अपना  काम चलाते हैं पता होता है इन्हें के 'शिकार '(Prey )/या फिर शिकारी(Predator)कब अपने घरोंदे से   निकलेगा ? किधर निकलेगा। आज यही काम टाइम- शिफटर कर रहा है। यह इस बात के लिए आपको आश्वस्त करता है भले आप नै -दिल्ली हवाई अड्डे से अमरीका के डिट्रायट के लिए विमान में चढ़े और अपनी मंज़िल तक पहुँचते -पहुँचते आपको कई टाइम जोन्स से गुज़रना पड़ेगा आप तरोताज़ा पहुंचेंगे। यह डिवाइस (युक्ति )इस बात को भांप लेगी के इस समय जहां -जहां से आप गुज़र रहें हैं वहां रात है या दिन ,संध्या है या प्रात : काल उसी के अनरूप आपके गिर्द तेज़ प्रकाश (Bright Light )या फिर गरम ना -मालूम सी मद्धिम रोशनियां(soft light )

शख्सियत :मनोहर लाल खट्टर

शख्सियत :मनोहर लाल खट्टर भले ही अब तक लोग ये जान गए हैं के मनोहर लाल खट्टर लगातार दूसरी बार हरयाणा के मुख्यमंत्री बने हैं  .निस्संदेह  अपने चायवाले को अब तक  अमरीका और ब्रिटेन जैसे विकसित  देश ही नहीं तीसरी दुनिया के गरीब और विकासमान देश  भारत के अति -जनप्रिय नेता ,लोकप्रिय प्रधान मंत्री के रूप में जानते हैं। वे खुद भी अपने श्रम से संसिक्त बचपन और कमतर शिक्षित अपने परिवार के बारे में खुद भी लोगों को बतलाकर श्रम की महत्ता को रूपायित करते रहें हैं लेकिन माननीय मनोहर लाल के संघर्षपूर्ण जीवन की कथा अभी आमफहम नहीं हुई है। जनता जनार्दन उनके अतीत के बारे में कितना जानती है निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। आपका बचपन रोहतक जिले के एक छोटे से गाँव निदाना(तहसील कलानौर ) में बीता।  (जन्म तिथि : पांच मई १९५४ )। आरम्भिक शिक्षा भी यही संपन्न हुई।यहीं से आप ने दसवीं की कक्षा का खर्चा अपने ही छोटे से खेत में उगाई गई सब्ज़ी रोहतक मंडी में सुबह सवेरे नित्य पहुंचा कर निकाला ।नेकी राम शर्मा गोरमेंट कालिज से आप हायर सेकेंडरी करके आगे की पढ़ी के लिए दिल्ली निकल गए।  आरम्भ में आप की तमन्ना डॉक

वकील हमारे लिए सदैव ही आदर के योग्य रहें हैं ऊकीलों से हमारा क्या किसी का भी पाला न पड़े

"क़ानून बनाम  लूट"के रखवाले हमारी सम्वेदनात्मक तरफदारी और तदानुभूति शहरी फौज (शहर की हिफाज़त करने वाली पुलिस )के साथ है। अलबत्ता वकीलों का हम सम्मान करते हैं लेकिन लूट में अगुवा उकीलों का नहीं जो सरे आम काले कोट की आड़ में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसरान को इन दिनों पीटते देखे जा सकते हैं। ये वकीलनुमा -उकील 'वकील' नहीं हैं -उकील हैं। जो अभी मुज़रिम की ओर  दिखाई देते हैं और बोली बढ़ने पर थोड़ी देर बाद ही पीड़ित की ओर । शहर का रक्षक ऐसी छूट नहीं ले सकता। ले भी ले तो बनाये नहीं रह सकता। उकील बनने से पहले आप कहीं से भी तालीम की रसीदें (डिग्री) ले सकते हैं,  मान्य या फ़र्ज़ी यूनिवर्सिटी से और धड़ल्ले से अपनी प्रेक्टिस उका -लत या मुक्का -लात शुरू कर सकते हैं। पैसे की लात ज्यादा वजनी होती है। पुलिस का सिपाही बनने के लिए फिटनेस होना लाज़मी है ,ट्रेनिंग भी खासी कठोर  भुगतानी पड़ती है। उकाळात में ठेका लिया जाता है केस जितवाने का ,वकालत असल होती है। वकील इंटेलेक्चुअल कहलाते हैं उकील विविधता लिए होता है।पुलिस वाला हो सकता है किसी ख़ास जात -बिरादरी का न भी बन पाता हो उकील इस मामले में विविधता

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।"

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।" तीसहजारी कोर्ट की घटना को मानव निर्मित कहा जाए ,स्वयंचालित ,स्वत : स्फूर्त या हालात की उपज ?बहस हो सकती है इस मुद्दे पर। मान लीजिये नवंबर २ ,२०१९ तीसहजारी घटना-क्रम लापरवाही का परिणाम था ,जिस की सज़ा तुरत -फुरत माननीय उच्चन्यायालय,दिल्ली ने सुना दी। पूछा जा सकता है : नवंबर ४,२०१९  को जो कुछ साकेत की अदालत और कड़कड़ -डूमाअदालत में  घटा वह भी लापरवाही का परिणाम था। क्या इसका संज्ञान भी तुरता तौर पर दिल्ली की उस अदालत ने लिया। तर्क दिया गया गोली चलाने से पहले पूलिस ने अश्रु गैस के गोले क्यों नहीं दागे ,लाठी चार्ज से पहले वार्निंग क्यों नहीं दी। उत्तर इसका यह भी हो सकता है :क्या जो कुछ घटा नवंबर २ को उसकी किसी को आशंका थी? यह एक दिन भी कचहरी के और दिनों जैसा ही था। जो कुछ घटा तात्कालिक था ,स्पोटेनिअस था ,चंद-क्षणों की गहमा गहमी और बस सब कुछ अ-प्रत्याशित ? तर्क दिया गया ,पुलिस धरने पर बैठने के बजाय देश की सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं गई। हाईकोर्ट के तुरता फैसले के खिलाफ ? चार नवंबर को अपना आपा खोने वाले  भाडू (भा

ज़ुबाँ संभाल के

ज़ुबाँ संभाल के  हर्ष का विषय है अरविन्द केजरीवाल साहब अब नारायण सामी (वर्तमान मुख्यमंत्री ,पुडुचेरी )की ज़ुबान नहीं बोल रहे हैं। महिलाओं के लिए मुफ्त सवारी डीटीसी और क्लस्टर बसों में कामगार वर्ग के लिए एक अच्छा तोहफा ज़रूर है। उन्हें चंद वोट इस एवज़ फ़ालतू भी मिल सकते हैं। मगर उनकी उस जुबां का क्या हुआ जो पहले (चुनाव पूर्व संकल्प में ५,००० अतरिक्त बसों की )और बाद में १०,००० अतिरिक्त बसें डीटीसी के पाले में लाने की बात कह रही थी।  आप को एक और बात के लिए भी बधाई अब आप पढ़े लिखों जैसी जुबां इस्तेमाल कर रहें हैं। लेकिन प्रदूषण के मामले में आप की बात में ज़रा भी वजन इसलिए नहीं है क्योंकि आप हैप्पी -सीडिंग की बात न करके धान की फसल के बचे खुचे अंश पराली के सर पर सारा वजन लाद रहें हैं।  हमारा मानना है हमारी होनहार छात्रा (किशोरी अमनदीप )से जो किसानी को पर्यावरण के अनुरूप ले जाने वाली परम्परा की अग्रदूत बन गई है आप सीख लेते हुए कुछ हैप्पी सीडिंग सुविधाएं किसानों को मुहैया करवाने की बात कहते।  इससे एक तरफ  मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती दूसरी तरफ ६०- ७० फीसद तक रासायनिक खाद की बचत होती। ज़नाब ये