सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

तालिबान की सरकार आते ही बदलेगा अफगानिस्तान का नाम, नये नाम से डरी दुनिया, ब्रिटेन ने दी थी चुनौती

 काबुल, अगस्त 16: काबुल पर कब्जा करने के बाद अब तालिबान ने अफगानिस्तान का नाम बदलने का फैसला किया है। तालिबान की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान का नया नाम रखा जाएगा, जिसकी आधिकारिक तौर पर घोषणा राष्ट्रपति भवन से की जाएगी। तालिबान की तरफ से कहा गया है कि अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, ये जल्द तय किया जाएगा और फिर अफगानिस्तान के नये नाम का ऐलान किया जाएगा।

बदल गया अफगानिस्तान का नाम! तालिबान के एक अधिकारी ने कहा है कि तालिबान के नेताओं ने फैसला किया है कि हुकूमत पर काबिज होने के बाद अफगानिस्तान का नाम बदल दिया जाएगा और नया नाम रखा जाएगा। तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान का नया नाम 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' होगा। न्यूज एजेंसी एसोसिएट प्रेस से बात करते हुए तालिबान के एक नेता ने कहा कि प्रेसिडेंशियल पैलेस में जब सभी तालिबान के नेता आ जाएंगे तब 'इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान' का ऐलान किया जाएगा। हालांकि, तालिबान के उस नेता ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। लेकिन, राष्ट्रपति भवन में मौजूद उस तालिबानी नेता ने कहा कि वो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं है। तालिबान के नये नाम के ऐलान से दुनिया डर गई है।

अफगानिस्तान में लगेगा शरिया कानून लोकतांत्रिक सरकार के दौर में अफगानिस्तान में कानून का राज था, लेकिन अब तालिबान ने कहा है कि उसके शासन काल में अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून लागू किया जाएगा और शरीयत के हिसाब से ही फैसला होगा। आपको बता दें कि जब 1996 में पिछली बार तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुई थी, उस वक्त भी तालिबान ने अफगानिस्तान का यही नाम रखा था और उस वक्त भी पूरे देश में शरिया कानून ही लागू था, जिसके तहत काफी क्रूर सजा दी जाती थी। उसी का नतीजा है कि आज भी अगर किसी कानून की आलोचना करती होती है तो उसे तालिबानी कानून का उपमा दिया जाता है। उस दौरान अफगानिस्तान की स्थिति काफी खराब थी और महिलाओं को अकेले घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा हुआ था।

महिलाओं के लिए खतरनाक तालिबान तालिबान की पिछली शासनकाल में महिलाओं को पढ़ने की इजाजत नहीं थी और वो स्कूल नहीं जा सकती थीं। महिलाओं को किसी भी तरह की नौकरी करने की इजाजत नहीं थी। जिसकी वजह से अफगानिस्तान में साक्षरता दर बुरी तरह से नीचे गिर गया था। महिलाएं अगर घर से बाहर निकलती थीं तो उनके साथ कोई पुरूष गार्जियन होता था और उनके लिए बुर्का पहनना अनिवार्य था। बुर्का नहीं पहनने पर महिलाओं की हत्या कर दी जाती थी। पिछले महीने भी तालिबान ने एक 22 साल की महिला की इसलिए हत्या की थी, क्योंकि महिला ने टाइट ड्रेस पहना था। तालिबान के राज में अफगानिस्तान में महिलाओं के पास कोई भी अधिकार नहीं थे।

'अमेरिकी राज' में सुधरी थी स्थिति अमेरिका ने जब 2011 में अफगानिस्तान में कदम रखा था तो धीरे धीरे महिलाओं ने घर के बाहर कदम रखना शुरू किया था और पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में महिलाओं का साक्षरता दर बढ़कर 37 प्रतिशत कर पहुंच गया था। अफगानिस्तान की सैकड़ों महिलाएं फौज में शामिल हुईं तो कई महिलाएं राजनीति के मैदान में उतरीं। कई महिलाओं ने अफगानिस्तान के अलग अलग इलाकों में गवर्नर का पद संभाला तो अब अफगानिस्तान के न्यूज चैनलों में भी काफी महिलाएं काम करती हैं। अफगानिस्तान में पिछले 15 सालों में महिला पत्रकारों ने देश के अलग अलग इलाकों की स्थिति से दुनिया को वाकिफ करवाया, लेकिन एक बार फिर अफगानिस्तान की महिलाओं के जीवन का सूर्य अस्त हो चुका है।

नये नाम से डर गई दुनिया! तालिबान ने जैसे ही अफगानिस्तान के नये नाम की घोषणा की है, ठीक वैसे ही दुनिया डर गई है। ब्रिटेन की तरफ से पहले कहा गया था कि अब किसी भी हाल में दुनिया में एक और इस्लामिक अमीरात नहीं बनने दिया जाएगा, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका मुंह देखते ही रह गये और तालिबान ने अफगानिस्तान का नाम बदल दिया। दरअसल, महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ित करने के लिए कुछ इस्लामिक देश कुख्यात रहे हैं और इसी को लेकर ब्रिटेन की तरफ से कहा गया था कि दुनिया में एक और इस्लामिक अमीरात नहीं बनने देंगें, लेकिन तालिबान ने ब्रिटेन समेत अमेरिका को पराजित कर अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शख्सियत :रश्मि ताई

शख्सियत :रश्मि ताई जो कभी सहपाठी थे अब हमसफ़र हैं 'हमराही' हैं। जी हाँ आप ठीक समझे हैं। हम बात कर रहें हैं 'वाहिनी साहब' रश्मि ताई ,अब रश्मि ठाकरे की। हर कामयाब मर्द के पीछे एक औरत होती है यह विश्वास तब और भी घना -गाढ़ा हो जाता है जब  सौम्यता  और शालीनता की नायाब मिसाल रश्मि ताई से मुखातिब होते हैं। एक आम मध्य वर्गीय परिवार से आईं हैं आप। आपके व्यक्तित्व पे मातुश्री (रश्मि ताई की  माता श्री मती मीणा ताई  )की गहरी छाप है। आप रंगभूमि में ही रहती हैं मेकअप मैन  की तरह. आपने उद्धव जी को सजाया संवारा है। पहले जे. जे. स्कूल आफ आर्ट्स में सहपाठी और अब जीवन संगनी बनकर उनकी अनाम राजनीतिक गुरु और सलाकार रहीं हैं आप। आगे भी ये सफर यूं ही नए क्षितिज नापेगा। आप ने ही हिन्दू हृदय सम्राट बाला केशव  प्रबोधनकर ठाकरे से उनका राजनीतिक वारिस उद्धव जी को बनाये जाने का वचन उनके जीते जी ले लिया था। आप एक अन्नपूर्णा साबित हुई हैं मातोश्री के लिए जो बाला साहब के बीमार होने पर उनकी कुशल पूछने आते सभी आम अउ ख़ास सैनिकों को  अल्पाहार क्या चाव से भरपेट भोजन आग्रह पूर्वक करवातीं थीं। आप लेंस के पी

महाभारत में कहा गया है : यन्न भारते !तन्न भारते !अर्थात जो महाभारत में नहीं है वह अन्यत्र भी नहीं है।ज़ाहिर है अभी जेनेटिक्स भी उन ऊंचाइयों को स्पर्श नहीं कर सकी हैं जो यहां वर्णित हैं

महाभारत में कहा गया है : यन्न भारते !तन्न भारते !अर्थात जो महाभारत में नहीं है वह अन्यत्र भी नहीं है।ज़ाहिर है अभी जेनेटिक्स भी उन ऊंचाइयों को स्पर्श नहीं कर सकी हैं जो यहां वर्णित हैं।    पुराणों में जो कहा गया है वह शुद्ध भौतिक विज्ञानों का निचोड़ भी हो सकता है ,सारतत्व भी। ज़रूरी नहीं है वह महज़ मिथ हो और चंद लेफ्टिए मिलकर उसका मज़ाक बनाते  उपहास करते फिरें । मसलन अगस्त्य मुनि को 'घटसम्भव' कहा गया है। 'कुंभज' और 'घटयौनि' भी 'कलशज :' भी ; एक ही अभिप्राय है इन  पारिभाषिक नामों का जिसका जन्म घड़े से कलश से हुआ है वही अगस्त्य है सप्तऋषि मंडल का शान से चमकने वाला कैनोपास (Canopus )ही अगस्त्य है जो लुब्धक (sirius)के बाद दूसरा सबसे चमकीला ब्राइट स्टार है।  गांधारी के बारे में कहा जाता है जब उसे पता चला कुंती एक बच्चे को उससे पहले जन्म देने वाली है (युधिष्ठिर महाराज ज्येष्ठ पांडव उस समय कुंती के गर्भ में ही थे )उसने ईर्ष्या वश अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण के मुष्टि प्रहार से सौ टुकड़े कर दिए यही सौ कौरव बनकर आये। एक ही फर्टिलाइज़्द ह्यूमेन एग के मुष्टि प्रहार से

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।"

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।" तीसहजारी कोर्ट की घटना को मानव निर्मित कहा जाए ,स्वयंचालित ,स्वत : स्फूर्त या हालात की उपज ?बहस हो सकती है इस मुद्दे पर। मान लीजिये नवंबर २ ,२०१९ तीसहजारी घटना-क्रम लापरवाही का परिणाम था ,जिस की सज़ा तुरत -फुरत माननीय उच्चन्यायालय,दिल्ली ने सुना दी। पूछा जा सकता है : नवंबर ४,२०१९  को जो कुछ साकेत की अदालत और कड़कड़ -डूमाअदालत में  घटा वह भी लापरवाही का परिणाम था। क्या इसका संज्ञान भी तुरता तौर पर दिल्ली की उस अदालत ने लिया। तर्क दिया गया गोली चलाने से पहले पूलिस ने अश्रु गैस के गोले क्यों नहीं दागे ,लाठी चार्ज से पहले वार्निंग क्यों नहीं दी। उत्तर इसका यह भी हो सकता है :क्या जो कुछ घटा नवंबर २ को उसकी किसी को आशंका थी? यह एक दिन भी कचहरी के और दिनों जैसा ही था। जो कुछ घटा तात्कालिक था ,स्पोटेनिअस था ,चंद-क्षणों की गहमा गहमी और बस सब कुछ अ-प्रत्याशित ? तर्क दिया गया ,पुलिस धरने पर बैठने के बजाय देश की सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं गई। हाईकोर्ट के तुरता फैसले के खिलाफ ? चार नवंबर को अपना आपा खोने वाले  भाडू (भा