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पुस्तक समीक्षा :चैनल वालों की मौज़ है

पुस्तक समीक्षा :चैनल वालों की मौज़ है 

लेखक :डॉ. नन्द लाल  मेहता 'वागीश ' (राष्ट्रीय विचारक, भारत धर्मी समाज )

प्रकाशक :अयन प्रकाशन ,१/ २०, मेहरौली  ,नै -दिल्ली। 

१२१८ ,शब्दालोक ,सैक्टर  -चार ,अर्बन इस्टेट ,गुरुग्राम -१२२ ००१ 

यह पुःतक मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलामों की मुक्ति को अर्पित की गई है। समर्पण पृष्ठ पर लेखक श्री वागीश यही लिखते हैं। 

पुस्तक में कोई २१ ,व्यंग्य लेखों का संकलन है। जिनमें से एक का शीर्षक है :

"ख़ुदा  ख़ैर करे "-

"वह सेकुलर पत्रकार है। एक तो सेकुलर ऊपर  से पत्रकार। करेला है और नीम पे चढ़ गया है। ख़ुदा  ख़ैर करे। न जाने क्या हो ?  कब किसे आतंकवादी घोषित कर दे और किसी आतंकवादी को प्रखर राष्ट्रवादी बतला दे। ख़ुदा  ख़ैर करे।"

पुस्तक भारत राष्ट्र के लिए प्रेत बने हुए ऐसे ही भकुओं को अर्पित की गई है ,उनकी मुक्ति को तिलांजलि देती है। 

आपने सिर्फ एक बानगी देखी  है एक अंश झलक मात्र देखी  है ,व्यंग्य -लेखांश देखा है।  इस शब्दागर की (शब्दों के जादूगर )कारीगर की शब्दों के इस अनुसंधानकर्ता  की, वैयाकरणाचार्य की लेखनी की एक झलक भर पलक भर देखी  है।  

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