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कलि-संतरणोपनिषद मंत्र संख्या छः व्याख्या सहित

कलि-संतरणोपनिषद मंत्र संख्या  छः व्याख्या सहित 

इति षोडशकं नाम्ना कलि कल्मष नाशनं 

नात : परतरोपाय : सर्व वेदेषु दृश्यते। 

शब्दार्थ :

इति -इस प्रकार ; षोडश -सोलह (१६ ) ; कं -संग्रह शब्दों का ; नाम्नाम -नामों का ; कलि -कलियुग ; कल्मष -पाप ; नाशनं -नाशक ; न -नहीं ; अत : -तब ;परतर -दूसरा ; उपाय -साधन विनाश का ,निवारण ;सर्व -सभी ; वेदेषु -वैदिक साहित्य ,वैदिक ग्रंथों ; दृश्यते -देखा गया है 

भावसार :

इस प्रकार कलियुग में इन सोलह नामों  का समुच्चय ही  पापनाशक है।अन्य कोई साधन पाप निवारण का सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में नहीं देखा बतलाया गया है। 

ब्रह्माजी पुन : इस बात पर बल देते हैं ,इस बात को वजन देते हैं के इस कलिकाल में हमारे पापों के शोधन का सभी वैदिक ग्रंथों में अन्य कोई उपाय नहीं बतलाया गया है।अपने अनंतकोटि कालिक जन्मों में हम ने अनेक पापकर्म जमा कर लिए हैं और उनके शोधन के किसी  उपाय की परवाह नहीं की  है। ऐसे में हम भाग्यशाली हैं हमें एक वैष्णव की  दिव्य कृपा मिली है के हमें ऐसे भक्तों का संगसाथ मिला है जो हमें उस गुरु तक ले जाते हैं जो एक परम्परा के अंग रहे आये हैं। (गुरु किसी शरीर का नहीं  ज्ञान का ,परम्परा का नाम है ). एक सच्चा गुरु ही हमें महामन्त्र सीखा सकता है हमारे पूर्वजन्मों  के पापकर्मों  को अपने ऊपर ले सकता है।

वही ज्ञान -गुरुता लिए हैं , शाश्वत  ज्ञान से संसिक्त है। और वही हमें प्रभु सेवा में लगा सकता है। कई उद्धत तत्व अपने को इन दिनों जगत गुरु बतलाते हैं ,पूरे विश्व का खुद को गुरु मानते कहते हैं। भारत के कई स्थान और अन्यत्र जगहें भी  इन छद्म गुरुओं को लेकर चर्चा में रहे हैं। ऐसे -ऐसे भी रहें हैं जो एक पुष्प की सुगंध लेने में असमर्थ रहें हैं वे अपने को भगवान् घोषित करवाते हैं जो एक फूल की गंध भी नहीं सूंघ सकते उन्हें भगवान् को अर्पित पुष्पमाल प्रसाद (प्रसादम स्वरूप)  में लेने का क्या हक़ है।श्रीमदभागवतम में ऐसे छद्म भगवानों का ज़िक्र आता है। 

 तप्तासुर्मि नामक नर्क में ऐसे सभी स्त्री -पुरुषों को  दण्ड भोगना पड़ता है जो यहां कलियुग में  अवैध यौन संबंध बनाते हैं।यमराज के कारिंदे वहां इन पर कोड़े बरसाते हैं। ऐसे कामी पुरुष को उत्तप्त लौह स्त्री प्रतिमा का आलिंगन लेना पड़ता है सज़ा में।और ऐसी ही कुलटा स्त्री को उत्तप्त लौह पुरुष प्रतिमा का आलिंगन लेना पड़ता है उस नर्क में। 

किसी पशु के साथ बनाये गए यौनसंबंध की भी ऐसी ही सज़ा मिलती है। 

कलियुगी कई गुरु अपने शिष्य को मदिरा सेवन ,जूआ खेलने ,मांस भक्षण की छूट दे देते हैं। ये वैष्णव विधान का उल्लंघन करने कराने वाले भी नर्क में ही स्थान पाते हैं। श्रीमदभागवतम के उसी भाग में इनका भी उल्लेख आया है। 

हम तो डूबेंगे ही सनम तुम्हें भी संग ले डूबेंगे। इसलिए गुरु के चयन में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। 

बाली महाराज उसी क्षण अपने गुरु का त्याग कर देते हैं जब वह शास्त्र विरुद्ध सलाह उन्हें देने लगते हैं। इति।   

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