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Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - Day 4(Part l )

नियतिवादी नियंतावादी -ये दो धाराएं निरंतर प्रवहमान रहीं हैं :

होइए वही जो राम रचि   राखा ,

को करि तरक बढ़ावै साखा। 

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ,

जो जस करहि सो तस फल चाखा। 

ये दो समानांतर दृष्टियाँ  हैं :

कर्म की और विचार करने की स्वतंत्रता आपको मिली है। आप अपना ही उत्पाद है अपना ही फल हैं अपनी ही फसल हैं -यह याद रखना आज की कथा की ये दो विशेष बातें हैं।जो कुछ भी हैं आप में ही  सृजक है।

नै सोच बनाइये बंधू बांधवों परिजनों के लिए। मैं नया क्यों नहीं सोच सकता। नया क्यों नहीं कर सकता वह अपने ढंग से।शपथ लेकर तो देखो। भले मेरी देह जाए मैं करूंगा -नया शरीर मिलेगा ,परन्तु मैं करूंगा।इस संकल्प के साथ आप वर्तमान में जो चल रहा है आपकी चर्या में उसे बदल सकते हैं।  

आपको श्रम करना देखना है :

मकड़ी को देखिये अनथक श्रम करते।  अनुराग के साथ नाचते हुए ठुमकते हुए करती है कर्म मकड़ी। अपना ही थूक निकाल कर एक जगह से दूसरी जगह जोड़ती है। वेब साइट मकड़ी से ही आई है। अपना ही संकल्प एक जगह से उठाया दूसरी जगह जोड़ दिया। कुछ नया हितकर उत्साह के साथ करते रहो जिसका बहुत लोग लाभ ले सकें। 

विश्वामित्र और वशिष्ठ ये दो ऋषि गुरु छाए रहे राम के गिर्द। जब तक तू मुझे हरा नहीं सकता यहां से निकल नहीं सकता। गुरु इसी चिंता में जीता था किस दिन मेरा शिष्य मुझे हराएगा। यही हमारी गुरुकुल परम्परा थी। किस दिन मेरा शिष्य मुझे जीते उस दिन का गुरु को इंतज़ार रहता था।शिष्य जिस दिन गुरु को जीत लेता था उस दिन गुरु को चैन मिलता था उस दिन वह कहता था -निकल जा। गुरुओं की चिंता रही है शिष्य मुझे परास्त कब करेगा मैं कब हारूंगा इससे।भारत का गुरु इसी सपने को लेकर जीता है। 


भारत की माँ इसी सपने को लेकर जीती है। मेरी पुत्री रूप लावण्य में सदाचार में शील और वैभव में मुझे जीत ले। उसे  मुझसे भी अच्छा घर मिले मुझसे अच्छा वर मिले।

मेरी पुत्री मेरे से बड़े घर में जाए और वहां की सम्पदा वहां के ऐश्वर्य से मुझे जीते।न केवल धन से शील संयम सदाचार औदार्य से भी। जो माँ की टोकाटाकी है वह टोकाटाकी नहीं है आपके उच्चतम चरित्र निर्माण के लिए उसकी व्याकुलता है। जीतो माँ को संस्कार में , विचार में, लज्जा में। 

जब तक पुत्र पराजित नहीं कर देता पिता चैन से नहीं बैठता। जो 'पूह ' नाम का नर्क है जो उससे त्राण दे दे उसका नाम पुत्र है और ये जानते हो कौन सा नर्क है -अभाव रुपी नर्क। कब बड़ा होगा कब ज्येष्ठ बनेगा, पुरुषार्थी होगा ,पराक्रमी होगा। ये कब गुणी होगा।जब पुत्र ही अपने उच्चतम चरित्र से पिता से आगे निकल जाता है , उसका मतलब यह हुआ पिता को  जीत  लिया उसने।तो नर्क से उसे तब मुक्ति मिल जाती है। 

ऋषियों का  मन (हृदय )जीत लिया राम ने : 

प्रात : काल उठके रघुनाथा ,

मातु पिता गुरु नावहिं माथा   .  

यही राम की गुडमॉर्निंग थी। कुछ आशीष मिल जाएँ। जिस दिन माता पिता को पता चल गया यह समर्पित है उस दिन वह आज्ञा देंगे। रोज़ प्रात : राम वन से पुष्प ,धतूर ,बिल्व तुलसी अनेक प्रकार के फल आदि लेकर गुरु के चरणों का अभिषेक करते हैं। भोर में कोई नया विचार नै आज्ञा मिल जायेगी गुरु से।नया आशीष ,प्रेम मिल जाए। सुबह उठकर आज्ञा की भीख मांगते हैं राम ।  ताड़का का वध हो गया अब कुछ नै आज्ञा दो। 

ताड़का तमोगुण की प्रतीक है 

जो ऋषियों के लिए सदैव ही खतरा बना रहता है। यहां कथा में गुणों का खेल दिखाया है। तमो गुण को एक्शन से (रजो गुण से ),राम की कर्मठता अ -प्रमत्तता  से ही जीता जा सकता है। राम ताड़का का त्राण करते हैं वध नहीं करते। करुणा और आद्रता से भरे राम उसे भी ब्रह्म लोक भेज देते हैं। शंकर संहार करते हैं। विष्णु सुधार का समय देते हैं अपराधी को ,यही वध है लेकिन राम त्राण देते हैं। मारीच को सौ योजन दूर फेंक कर अपने बाणों से रावण को यह संकेत देते हैं -मैं आ गया हूँ। 

राम वन प्रवास में गुरु विश्वामित्र से कभी अधीर होकर यह नहीं कहते -मुझे अयोध्या छोड़ने कब जा रहे हैं आप। आप के आश्रम अब भय मुक्त हो तो गए अहिल्या का उद्धार हो तो गया अब क्या शेष रह गया। राम को कोई ओतसुक्य नहीं है अयोध्या लौटने का। 

गुरुदेव कहते हैं सारे वनप्रांतरों नदियों को पार करके दूर जाना है। सामने गंगा है और आज की आज्ञा यह है गंगा के ध्यान ,पूजा उसके मर्म को समझना है। राम आज मैं तुझे जल की महिमा समझाऊंगा। आज मुझे ये बताना है यह जल क्या है नीर क्या है। हम नीर से ही बने हैं। हम जल से ही तो बने हैं माता पिता के रज और वीर्य में आद्रता ही तो है। 

कोई नारायण से पूछे वह कहाँ पैदा हुआ है। नीर से नारायण बना है । क्षीरसागर। नीर से ही नीरजा है । नीर जब पर्बतों पर रहता है तब वह पारबती कहलाता है । जब वह शैल शिखरों पर रहता है तब क्या चाहिए उसे- शैलजा। जब वह धरती पर आता है भुवनेश बनके तब भूमिजा कहलाता है । इसलिए गुरु ने राम को पूर्वजों की गाथा सुनाई। 

इस धरती पर एक चीज़ है जो व्यर्थ मत करना -एक भी जल कण व्यर्थ मत करना। अन्न जल का कण और संत का संग(क्षण ) कभी व्यर्थ मत करना -यही कथा का सन्देश है यहां। 

इसलिए आपको कभी किसी ब्रह्म ग्यानी के समक्ष जाने का मौक़ा मिले -रुको बोलना मत। क्योंकि पूछना ही नहीं आता आपको। आपको पता ही नहीं है ,पूछना क्या है ?आपको यह तो पता ही नहीं हैं आपके प्रश्न क्या हैं दुविधा क्या है। आपकी शंकाएं क्या हैं विचार करो तौलो। दो चार पांच महीने पकाओ। 

गुरु जगा हुआ प्राणी है जागृत सत्ता है जिस दिन बुझे हुए दीपक का जले हुए दीपक से संपर्क होगा -प्रकाश होगा। 
एक भुना हुआ चना और एक कच्चा चना आपकी हथेली पे रख दें तो -कच्चा चना यदि रात भर पानी में भीगा  रहेगा तो उसका अंकुरण हो जाएगा। 
अन्न जल का कण और संत का क्षण व्यर्थ मत करो शास्त्र यह कहता है। 

गुरु ने राम से कहा आपके पूर्वज बड़ी कठिनाई से गंगा लेकर  आये हैं ,आइये गंगा का पूजन करते हैं :

 गंग  सकल मुद मंगल मूला ,

सब सुख करनी, हरनी  भव  शूला। 

     
सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=kxb17bPyUpM

(२ )

LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 28th Dec 2015 || Day 3


(३)


LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 29th Dec 2015 || Day 4

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