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(१ )क्या शेरनियां सुन्नत करवाती हैं ? (२ )हिज़ाब ,हेड गियर और बुर्कानशीं होती हैं। (३ )क्या ये लोग खुद को बब्बर शेर समझ रहें हैं।

उपभोक्ता वाद की नै भाषा

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अभी तो शेरनियां ही आईं हैं जब पंद्रह करोड़ गादड़ आएंगे  तब आप का क्या हाल होगा पंडितजी। इस मुद्देनुमा जुमले पर जब हमने भारत धर्मी समाज  के प्रमुख एवं प्रखर चिंतक वैयाकरणाचार्य डॉ. प्रह्लाद राय  से बात की तब वह बोले -क्या ये भाईसाहब यह कहना चाहते हैं के परदे से मुंह बाहर निकाल लिया हमारी शेरनियों ने तो आप डर के मारे ही भाग जाएंगे। ऐसा कहकर वह खुद को कहीं बब्बर शेर ही तो नहीं कह रहें हैं प्रकारांतर से।

आपने कहा यह  उपभोक्ता   वाद की नै भाषा है जिसे नखशिख हिज़ाब में रख के एक कमोडिटी की मानिंद भोगा कभी उससे हलाला करवाया कभी कुछ और ना नुकर करने पर एक और औरत को घर में ले आये वे तमाम गादड़ जिन्होनें घर की इज़्ज़त को पे -पर्दा कर चौराहे पे ला बिठाया उनसे पूछा जाना चाहिए :

(१ )क्या शेरनियां सुन्नत करवाती हैं ?

(२ )हिज़ाब ,हेड गियर और बुर्कानशीं होती हैं।

(३ )क्या ये लोग खुद को बब्बर शेर समझ रहें हैं।

उम्मीद है ये साहेबान और इनके अगुवा असदुद्दीन ओवैसी ज़वाब ज़रूर देंगे।विश्व माँ पार्वती गादड़  की सवारी नहीं करती हैं शेर की ही करतीं है।
https://www.youtube.com/watch?v=PO683IEWS0s  

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