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"तुलसी बुरा न मानिये, जो गवाँर कहि जाय। जैसे घर का नर्दहा भला बुरा बहि जाय॥"

"तुलसी बुरा न मानिये, जो गवाँर कहि जाय।

जैसे घर का नर्दहा भला बुरा बहि जाय॥"

भावसार :गंवार की बात का  बुरा नहीं मानना चाहिए जैसे घर की नाली में भला बुरा सभी बह जाता है।


तुलसी सहन कर लेते हैं किन्तु वे कबीर की तरह कुटी छवाके रखने वाले नहीं है।

रामचरितमानस के बालकांड में उन्होंने संतों  और असन्तों दोनों की वन्दना की है:

बन्दहुँ संत असज्जन चरणा। दु:खप्रद उभय भेदु कछु बरना।।

बिछुरत एक प्रानु हरि लेहीं। मिलत एक दु:ख दारुन देहीं।।

मैं(तुलसी) संतों और असंतों दोनों की ही वन्दना करता हूँ। दोनों में बस थोड़ा सा अन्तर है। एक के बिछुड़ने पर जैसे प्राण ही निकल जाते हैं और दूसरे मिलने पर महान दु:ख देते हैं। 

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |

बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।


अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोड़ कर मीठा बोलने का प्रयास करे |

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