"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।" तीसहजारी कोर्ट की घटना को मानव निर्मित कहा जाए ,स्वयंचालित ,स्वत : स्फूर्त या हालात की उपज ?बहस हो सकती है इस मुद्दे पर। मान लीजिये नवंबर २ ,२०१९ तीसहजारी घटना-क्रम लापरवाही का परिणाम था ,जिस की सज़ा तुरत -फुरत माननीय उच्चन्यायालय,दिल्ली ने सुना दी। पूछा जा सकता है : नवंबर ४,२०१९ को जो कुछ साकेत की अदालत और कड़कड़ -डूमाअदालत में घटा वह भी लापरवाही का परिणाम था। क्या इसका संज्ञान भी तुरता तौर पर दिल्ली की उस अदालत ने लिया। तर्क दिया गया गोली चलाने से पहले पूलिस ने अश्रु गैस के गोले क्यों नहीं दागे ,लाठी चार्ज से पहले वार्निंग क्यों नहीं दी। उत्तर इसका यह भी हो सकता है :क्या जो कुछ घटा नवंबर २ को उसकी किसी को आशंका थी? यह एक दिन भी कचहरी के और दिनों जैसा ही था। जो कुछ घटा तात्कालिक था ,स्पोटेनिअस था ,चंद-क्षणों की गहमा गहमी और बस सब कुछ अ-प्रत्याशित ? तर्क दिया गया ,पुलिस धरने पर बैठने के बजाय देश की सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं गई। हाईकोर्ट के तुरता फैसले के खिलाफ ? चार नवंबर को अपना आपा खोने वाले भाडू (भा
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